लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
वह इन्हीं विचारों में
मग्न था कि
नायकराम कंधो पर
लट्ठ रखे, एक
अंगोछा कंधो पर
डाले, पान के
बीड़े मुँह में
भरे, आकर खड़ा
हो गया और
बोला-सूरदास, बैठे
टापते ही रहोगे?
साँझ हो गई,
हवा खानेवाले अब
इस ठंड में
न निकलेंगे। खाने-भर को
मिल गया कि
नहीं?
सूरदास-कहाँ महाराज,
आज तो एक
भागवान से भी
भेंट न हुई।
नायकराम-जो भाग्य
में था, मिल
गया। चलो, घर
चलें। बहुत ठंड
लगती हो, तो
मेरा यह अंगोछा
कंधो पर डाल
लो। मैं तो
इधार आया था
कि कहीं साहब
मिल जाएँ, तो
दो-दो बातें
कर लूँ। फिर
एक बार उनकी
और हमारी भी
हो जाए।
सूरदास चलने को
उठा ही था
कि सहसा एक
गाड़ी की आहट
मिली। रुक गया।
आस बँधी। एक
क्षण में फिटन
आ पहुँची। सूरदास
ने आगे बढ़कर
कहा-दाता, भगवान्
तुम्हारा कल्यान करें, अंधे
की खबर लीजिए।
फिटन रुक गई,
और चतारी के
राजा साहब उतर
पड़े। नायकराम उनका
पंडा था। साल
में दो-चार
सौ रुपये उनकी
रियासत से पाता
था। उन्हें आशीर्वाद
देकर बोला-सरकार
का इधार कैसे
आना हुआ? आज
तो बड़ी ठंड
है।
राजा साहब-यही
सूरदास है, जिसकी
जमीन आगे पड़ती
है? आओ, तुम
दोनों आदमी मेरे
साथ बैठ जाओ,
मैं जरा उस
जमीन को देखना
चाहता हूँ।
नायकराम-सरकार चलें, हम
दोनों पीछे-पीछे
आते हैं।
राजा साहब-अजी
आकर बैठ जाओ,
तुम्हें आने में
देर होगी, और
मैंने अभी संध्या नहीं
की है।
सूरदास-पंडाजी, तुम बैठ
जाओ, मैं दौड़ता
हुआ चलूँगा, गाड़ी
के साथ-ही-साथ पहुँचूँगा।
राजा साहब-नहीं-नहीं, तुम्हारे बैठने
में कोई हरज
नहीं है, तुम
इस समय भिखारी
सूरदास नहीं, जमींदार सूरदास
हो।
नायकराम-बैठो सूरे,
बैठो। हमारे सरकार
साक्षात् देवरूप हैं।